ज़िंदगी तू कहाँ जा रही है,
कभी पास कभी दूर जा रही है
सपने भी है मेरे अपने भी है मेरे
फिर भी तू मुझे क्यों इतना सता रही है
जिन्दगी तू कहाँ जा रही है....
एक बच्चे से उसका बचपन छीन लिया
फिर भी उसने समय को अपना लिया
लेकिन कभी तू अपना मोती तान सुना
अपनों से अपनों को मान दिला
मेरी उलझन बढती जा रही है
जिन्दगी तू कहाँ जा रही है
जीने के लिए तरंगे लिए
मन में हजारो उमंगे लिए
ढूँढती रही जिस में
अपने धर के लिए
तू उसे कभी लायी ही नहीं
फिर भी समाज में उसकी कमी
क्यों कही जा रही है
जिन्दगी तू जहाँ जा रही है
आँखों में रोज सागर उमड़ता है
फिर भी मुस्कुराना पड़ता है
आस किसी से कुछ नहीं
फिर भी सबको अपना बताना पड़ता है
क्यों इतनी ठोकर दिला रही है
जिन्दगी तू कहाँ जा रही है
रुला तू जितना रुलाएगी
मैं भी देखूं तेरी हद कहाँ तक जाएगी
मैं भी एक दिन तुझ से जीत जाउंगी
और कभी लौटकर नहीं आउंगी.......
- काजल शर्मा 'खनक'
Waooo
ReplyDeleteVery nice 👌
ReplyDeleteयह कविता आपको जीवंत बनाती है
ReplyDelete