Skip to main content

लाल किताब में लिखा यूँ .......

 

 


सूरज लाल बभूका होकर तमतमा रहा था। बुन्दुतेली का पेट भूक से मुड़ा जा रहा था। तभी उसने देखा उसका लड़का खाना लेकर आ रहा था। उसने खुदा का शुक्र करा और लड़के से खाना लिया। एक पेड़ के नीचे जगह साफ की, और खाना खाने बैठ गया। उसने टुकड़ा मुंह मे रखा ही था की देखा, बराबर वाले फैजान के खेत से उसका बैल मजे से खेत मे आकर चरर चरर चर रहा था। 

बुंदु का शरीर जो अभी भूक से मुड़ा जा रहा था गुस्से से तड़क गया। गाहे बगाहे उसका बैल अपने मालिक की जागीर समझ कर चरने आ जाता था। बून्दु को पता था की फैजान ही जानबूझकर बैल को बून्दु के खेत का रास्ता दिखाता था। अब की बार बून्दु ने बैल को पकड़ा और लाकर उसी पेड़ से बांध दिया जहां बैठकर वो खाना खा रहा था।  

फैजान के लड़के ने जब देखा की बून्दु ने उनके बैल को बांध दिया तो वो भागकर बून्दु के पास पहुंचा।

“चचा ये हमारा बैल है यहाँ क्यू बांध दिया?”

“तुम्हारा बैल है तो यहाँ क्यूँ चर रहा था?” बून्दु ने तमतमा कर जवाब दिया।

लड़के ने बून्दु को देखा और उल्टे पैरो बाप को बताने भागा। दो मिनट मे ही फैजान चार पाँच लोगो के साथ गुर्राता हए आ रहा था।

“क्यू बे बून्दु, मेरा बैल क्यूँ बांधा?” फैजान तड़तड़ाया।

बुन्दु सारी जान लगाकर बोला, “बार बार मेरे खेत में चरने आ जाता है  इस बार तो तभी दूंगा जब ये कसम दोंगे की ये बैल दुबारा मेरे खेत मे नहीं आएंगा”

मेरे से कसम लेगा, औकात देख कर बात कर, चल मेरा बैल दे” फैजान ने तिरस्कार से कहा और बैल खोलने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन आज बुन्दु ने भी सोच रखा था की बिना कोई फैसला हुए जाने नहीं देना। उसने फैजान को रोकने की कोशिश की। फैजान तगड़ा आदमी था उसने बुन्दु को पीछे धकेल दिया। लेकिन बुन्दु दुबारा आगे बढ़ा, शोर शराबा सुनकर आस पास के खेत वाले भी आ गए।

लड़ाई बढ़ती देख लोगो ने उन्हे रोकने की कोशिश की। एक ने सलाह दी, की चेयरमेन की बैठक मे जाकर मसला सुलझवाओ वरना ऐसे तो जान माल का नुकसान हो सकता है। बैठक की बात सुनकर फैजान तो एक दम से तैयार हो गया। लेकिन बुन्दु पाशोपेश मे आ गया, लेकिन वहाँ जाने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था वो इतना मजबूत नहीं था की फैजान से लड़ सकता। अच्छे की उम्मीद के साथ वो चल लिया। 

        

* * * * * *

इस बार फिर तीसरी बार अब्दुल हकीम ने अजमतुल्लाह को हराकर नगरपालिका चेयरमेन का चुनाव जीता था। पूरा कस्बा उसी तरह दो गुटो मे बंटा हुआ था जैसे विश्व युद्ध के वक़्त दुनिया दो भागो मे बँटी हुई थी। लेकिन फिर भी कस्बे मे कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्हे इस राजनीति से कुछ लेना देना नहीं था सुबह शाम खेतो मे जान मारना ही जिनकी किस्मत मे था।

बुन्दु उन्ही लोगो मे से था जिनके सुबह-शाम खेतो पर ही बीतते थे। जबकि फैजान जैसे लोगो की वजह से ही अब्दुल हकीम चुनाव जीतते थे। फैजान उन लोगो मे से था जिनका काम रोज हकीम जी बैठक पर जाना था चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात हो।

हकीम जी की बैठक पर एक बड़ी से लालटेन मगरिब के बाद ही जल जाती थी और धीरे धीरे वहाँ मंडली इकट्ठी होती थी और फिर रात के 10 बजे तक वहाँ गप चलती थी। 

                                                           
                                                                * * * * * *

बुन्दु बैठक पर पहुँच गया। हकीम जी बैठे हुए मुंशी से कुछ समझ रहे थे। 4-5 लोग भी बैठे हुए थे कुछ चाय पीते हुए बाते कर रहे थे कुछ अखबार पढ़ रहे थे। लोगो के वहाँ पहुँचते ही सब ने अपना काम रोक दिया। हकीम जी ने फैजान को देखकर पूछा, “क्या हुआ फैजान? कहाँ से आ रहे हो?

हकीम जी, इस बुन्दु ने मेरा बैल बांध लिया और जब मैं लेने गया तो लड़ने लगा” फैजान गुस्से से बुन्दु की और इशारा करके बोला।

“क्यू रे बुन्दु, यही बात है?” हकीम जी नरमी से बोले। उनको पता था इस बार तेलियो ने उन्हे ही वोट दिया है। 

बुन्दु आगे आकर बोला “ हकीम जी, फैजान का बैल मेरे खेत मे पाँचवी बार आया है पहले भी मैंने इससे शिकायत की थी लेकिन इस पर कोई असर नहीं हुआ इस बार फिर मेरे खेत की और बैल चरने भेज दिया। अबकी बार मैंने पकड़ लिया और इस कसम पर छोड़ने का कहा की ये दुबारा मेरे खेत की तरफ न आए लेकिन ये मरने मारने पर उतारु हो गया”

हकीम जी को अपने चमचो का पता था लेकिन उनके बिना काम भी नहीं चल सकता था। हकीम साहब ने एकबारगी सबकी और देखा फिर मुंशी जी को बोले, “मुंशी जी लाल किताब लाइये देखे उसमे क्या लिखा है बैल चराने को लेकर”

मुंशी भी हकीम का ही मुंशी था उसने चाबी ली और पास खड़ी अलमारी से लाल किताब निकाली। हिंदुस्तान की अदालते संविधान को देखकर फैसला देती थी और कस्बे की अदालत यानि हकीम जी की बैठक पर लाल किताब से फैसला होता था और ये लाल किताब लोगो की हैसियत देख कर फैसला देती थी।

मुंशी जी ने किताब उठाई पन्ने पलटे और एक जगह देख कर बोले, हकीम साहब, लाल किताब मे लिखा यूं, तेल्ली बैल लडावे क्यूँ, बैल के बदले बैल और सौ के रूपए का दंड।”

लाल किताब का फैसला सुनकर तेल्ली हक्का बक्का रह गया जबकि फैजान की बखिया खिल गयी। फैसला हो गया, बैठक मे हकीम साहब ने फैसले की तामील का हुक्म दे दिया। बुन्दु अब कहाँ से सौ रुपए दे और अपना बैल कैसे दे दें। वो हकीम साहब के सामने मिन्नते की लेकिन लाल किताब का फैसला हो गया था। बैठक उठ गयी। बेचारा बुन्दु लुटा पिटा सा घर की और चल दिया। 

                                        
                                                             * * * * * *

फैसले को दो दिन हो चुके थे। उस रात जब बुन्दु खेतो से घर आ रहा था तो अचानक उसके सामने दो आदमी आए, बुन्दु सहम गया । उनमे से एक बोला “तू बुन्दु ही है न ?” बुन्दु ने हाँ मे सिर हिलाया। पूछने वाले ने दूसरे की तरफ देखा और बोला,

“चल हमारी साथ, तुझे अजमत साहब ने बुलाया है” बुन्दु चिंता मे आ गया की अब क्या नयी मुसीबत आ गयी। लेकिन वो उनके साथ हो लिया।

अजमत साहब के बैठक पर पहुंचे, सामने अजमत साहब बैठे थे। बुन्दु उनकी और देखकर बोला “अजमत साहब, क्या गलती हो गयी क्यू बुलवा लिया मुझे रात को ही?”
“देख बुन्दु
, मैं इस हकीम के खिलाफ चुनाव इस लिए ही लड़ूँ ताकि मैं कस्बे को ठीक कर सकूँ, लेकिन कस्बे वाले ने तो हकीम का ही कलमा पढ़ रखा। इस बार तेली और जुलाहो ने भी उसे वोट दिया। लेकिन बताओ हकीम ने क्या दिया उसके बदले मे? तुम्हारे फैसले मे अपने जात के आदमी को तुम्हारे से ऊपर रखा। और नाम ले दिया लाल किताब का”

बुन्दु रुहांसा होकर बोला “जी अजमत साहब, मेरा तो नुकसान हो गया। बताओ क्या करू, बैल दे दूंगा तो दूसरे अकेले बैल से क्या कर लूँगा? सौ रुपए कहाँ से लाऊं?

“बुन्दु, भले ही लोग मुझे वोट न दे लेकिन मैं तेरे जैसे हर आदमी के साथ हूँ इसलिए तुझे यहाँ बुलवाया। देख लाल किताब कुछ नहीं, वो वही फैसला देती है जो हकीम चाहता है अगर तू हाँ कहे तो हम तेरा मामला अदालत मे लेकर जाएँगे। वहाँ हकीम को करारी शिकस्त मिलेगी

अदालत का नाम सुनकर बुन्दु सहम कर बोला “अदालत? अजमत साहब मेरे जैसे ठेठ का अदालत मे क्या काम ? और अदालत का खर्चा?”

“तू उसकी फिक्र न कर, तेरा सारा खर्चा हम उठाएंगे। तू बस हमारे साथ चल” अजमत साहब ने कहा। बुन्दु के सामने मुश्किल थी।  किसी एक के साथ जाना दूसरे का गुस्सा मौल लेना था। लेकिन उसके सामने कोई और चारा भी नहीं था उसने खुदा का नाम लेकर हाँ कर दी।

मुकदमे शुरू हो गया। हकीम साहब के खिलाफ बुन्दु ने मुकदमा कर दिया सब की जुबान पर बस यही था। समझने वाले समझ गए थे की बुन्दु के कंधे पर बंदूक रखकर अजमत हकीम साहब से बदला ले रहा है। बुन्दु का घर से निकालना मुश्किल हो गया था। कुछ तो ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि हकीम साहब ने गलत फैसला दिया है। 

गलत फैसलो को भुगतने वाले भी डर के मारे कुछ बोल नहीं रहे थे कुछ भी हो कस्बे की सरकार तो वही थी। अदालत मे गवाहो की मांग हुई। वकील ने बुन्दु से उन लोगो के नाम पूछे जो उस दिन उस के साथ हकीम साहब की बैठक पर गए थे। लेकिन पानी मे रहते हुए मगरमच्छ से कोई बैर नहीं रखना चाहता था सब ने गवाह बनने से साफ मना कर दिया।

बिना ठोस सबूत के अदालत ने मामला खत्म कर दिया। हकीम साहब की वाह वाह हो रही थी। अजमत साहब कस्बे के लोगो पर अफसोस जता रहे थे। बुन्दु का तो सब खत्म हो चुका था। अदालत के चक्कर मे खेतो का नुकसान हो गया था। लोग उसकी कमअक्ली पर अफसोस कर रह थे। किसी तरह बुन्दु ने दुबारा अपने सुबह शाम शुरू किए। हकीम जी ने अदालत के डर से बैल का दंड माफ कर दिया था। लेकिन सौ रुपए का कर्जा अभी भी बुन्दु के सर पर था।

कई महीनो के बाद जब बुन्दु हकीम साहब के सामने से गुज़र रहा था तो आज भी अंदर लाल किताब का इंसाफ हो रहा था। मुंशी जी पढ़ रह थे।

“लाल किताब मे लिखा यूं ..............”

 

 

Comments

  1. अत्यंत ही सुंदर अभिव्यक्ति है राजनीति, समाज की हकीकत और आम व्यक्ति की अन्तरवेदना को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया है

    ReplyDelete

Post a Comment

Trending at AbabeelFolks

Mahakta Aachal: A digest or a healing drug?

  November 1999 Edition of Mahakta Aanchal, Photo by @ababeelclicks   When I was a child the first digest I was acquainted with was “Mahakta Aanchal”.  A digest that was famous among ladies so much. People were crazy for it and they still are. I can recall the memory when my aunt had many of these Digests, and I could say those were read by many other ladies.  Mahakta Aanchal is such a drug that people fear if they start to read they will be addicted to it. There is madness for it. A person could forget everything for it. If a person buys a copy of this digest it cannot be limited to that person, it will go into the hands of many people. If a person buys it, it will be read by a minimum of 10 people, and it will go minimum of 10 houses. I have 11 editions of Mahakta Aanchal, and I can say these have been read by everyone in my family, every friend or relative of my family members, who read it. People especially ask their knowns if they have old editions of these Digests. I have an ed

ज़िंदगी तू कहाँ जा रही है......

     ज़िंदगी तू कहाँ जा रही है,  कभी पास कभी दूर जा रही है  सपने भी है मेरे अपने भी है मेरे  फिर भी तू मुझे क्यों इतना सता रही है                                    जिन्दगी तू कहाँ जा रही है.... एक बच्चे से उसका बचपन छीन लिया  फिर भी उसने समय को अपना लिया  लेकिन कभी तू अपना मोती तान सुना  अपनों से अपनों को मान दिला  मेरी उलझन बढती जा रही है  जिन्दगी तू कहाँ जा रही है                                      जीने के लिए तरंगे लिए                                      मन में हजारो उमंगे लिए                                     ढूँढती रही जिस में                                      अपने धर के लिए                                       तू उसे कभी लायी ही नहीं                                        फिर भी समाज में उसकी कमी                                        क्यों कही जा रही है                                        जिन्दगी तू जहाँ जा रही है  आँखों में रोज सागर उमड़ता है  फिर भी मुस्कुराना पड़ता है  आस किसी से कुछ नहीं  फिर भी सबको अपना बताना पड़ता है  क्यों इतनी ठोकर दिला रही है  जिन्दगी तू कहाँ

Here is what Punjabi Music Industry contributed to Bollywood

Months ago, a video was released on varun Grover’s youtube channel, title of the video was “ hme credit de do yaar ”, that video featured 15 contemporary lyricists of Bollywood such as manoj muntashir, swanand kirkire, Sameer anjan, Amitabh bhattacharya, kausar munir, and Varun grover also. According to the description of video “on official youtube channels of every big music company, hundereds of song videos have wrong or missing credits of lyrics writers.” So they urged to music streaming apps/ platforms to give proper credit to lyricists also. According to them, currently no music streaming apps/platforms has any algorithm of prominently displaying lyrics credits or making a song searchable by lyricist’s name. Some days ago, when my cousin asked me “why almost every Punjabi songs have “jaani” word”. That time, I thought that this question could be the best answer to that video. Punjabi music Industry has done a great job of recognizing not only their singers but also lyricists a